Asmita was kind enough to translate my Shashi Kapoor farewell post into Hindi for those readers who are more comfortable with that script. It’s the same as this post here, only in Hindi. I thought it would be nice to put it up today, in honor of Jennifer’s annual Christmas Brunch.
शशि कपूर नही रहे और एक दौर गुज़र गया
मैं हैरान हूँ की मैं इस खबर के लिए बिल्कुल प्रिपेर्ड नही थी. शम्मी, उनके लिए थोड़ी थी. वे इतने उम्र-दराज़ और
बीमार थे. उनके गुज़र जाने पर मैं दुखी हुई थी पर शॉक्ड नही. पता नही क्यूँ शशि की खबर मेरे लिए इतनी शॉकिंग
क्यूँ थी, वे भी काफ़ी उम्र-दराज़ और बीमार थे. शायद इसलिए की वे अपनी जेनरेशन के आख़िरी कपूर थे. कपूर
खानदान अब बदल रहा है.
शशि तीनों कपूर भाइयों में सबसे छोटे थे और काफ़ी साल छोटे. उनकी जेनरेशन त्रासदी के साए में दबी थी वह भी
उनकी पैदाइश से पहले से ही. 1931 में, एक ही हफ्ते में दो कपूर भाई ख़तम हो गये थे और एक (शम्मी) का जन्म
हुआ था. राज, जो भाइयों में सबसे बड़े थे, अपने बचपन के साथी खो चुके थे और अपने नये छोटे भाइयों से कभी
उतने करीब ना हो सके जितने वे अपने ख़त्म हो चुके भाइयों से थे.
परिवार में सबसे छोटे शशि, अपनी माँ के चहेते थे और वे उनका काफ़ी ख़याल रखती थीं. वे उनकी लुक्स का काफ़ी
ख़याल रखतीं थीं और उनके बालों को माथे के ऊपर काढ़ती थीं क्योंकि उनको शशि का सिर काफ़ी बड़ा लगता था
और बाल सामने काढ़ कर वो उनका माथा ढँक देती थीं. इसी बड़े सिर की वजह से शशि के बाद उनके और बच्चे ना
हो सके क्योंकि उनकी डिलीवरी बेहद मुश्किल रही थी.

शशि फिल्मों और थियेटर के बीच बँटे हुए बड़े हुए. उनके पिता, पृथ्वीराज, जाने माने फिल्म स्टार थे पर वे फिल्में
सिर्फ़ पैसों के लिए करते थे. उनका पहला प्यार हमेशा उनकी स्टेज कंपनी, पृथ्वी थियेटर्स, रही. उनके तीनों बेटे
थियेटर में ही पले-बढ़े पर शशि के पास ज़्यादा विकल्प थे. जब तक वे सात साल के हुए, उनके बड़े भाई राज, एक
बड़े फिल्म स्टार, और फिर प्रोड्यूसर बन चुके थे और इंडस्ट्री में काफी हैसियत रखते थे. जब तक शशि जवान हुए,
उनके दूसरे बड़े भाई, शम्मी भी राज के नक्शेकदम पर चलते हुए एक बड़े फिल्म स्टार बन चुके थे.
पर शशि का रुझान शुरू से ही स्टेज की तरफ ज़्यादा था. अपने भाइयों की ही तरह वे भी 18 वर्ष की उम्र तक पृथ्वी
थिएटर में स्टेज मैनेजर के पद तक पहुँच गए थे. यहीं उनका जीवन हमेशा के लिए बदल गया जब उन्होंने एक
खूबसूरत अँग्रेज़ लड़की को ऑडियंस में बैठे देखा. लड़की की सहेली ने शशि से बैकस्टेज टूर की गुज़ारिश की और
उनका परिचय कराया. वे जेनिफ़र केंडल थीं जो की खुद एक स्टेज एक्टरों के परिवार की सदस्य थीं – केंडल परिवार
पूरे भारत में भ्रमण करके शेक्सपियर के नाटकों का मंचन करता था. जेनिफ़र शशि से चार साल बड़ी थीं और अपने
परिवार के नाटकों में मुख्य भूमिकाएँ निभाती थीं. उन्हें इस हैंडसम और चार्मिंग लड़के से जल्द ही उतना ही लगाव
हो गया जितना की उन्हें इनसे हो गया. पर वह केवल कुछ समय के लिए शहर में थी और उनके परिवार को जल्द
ही दूसरे शहर में अगले टूर के लिए निकलना था. जेनिफ़र से दोबारा मिलने के लिए शशि ने उनके परिवार की ड्रामा
कंपनी ज्वाइन कर ली.
सभी कपूर बेहद रोमांटिक और ड्रमेटिक हैं. शम्मी , राज, ऋषि, यह सब अपने शानदार रोमांटिक अंदाज़ के लिए
जाने जाते थे. शशि ने सच्ची क़ुर्बानी दी. अपने प्यार के लिए उन्होंने अपना घर परिवार और करियर छोड़ दिया
और जेनिफ़र के परिवार के साथ पूरे भारत में भ्रमण करके उनकी शेक्सपियर कंपनी में छोटे मोटे रोल किये तब
तक जब तक वे उनके साथ जाने को तैयार न हो गयीं.

शादी के वक्त वे दोनों काफी कम-उम्र थे, सालों में भी और मन से भी. दोनों ही घनिष्ठ परिवारों और थिएटर के
सुरक्षित माहौल में पले-बढ़े थे और बाहरी दुनिया का उनको तजुर्बा नहीं था. वे एक छोटे, एक बैडरूम वाले फ्लैट में
रहते थे जिसमे बाथरूम बाकी बिल्डिंग से शेयर करना पड़ता था. जब हर सुबह जेनिफ़र उलटी करने उस शेयर्ड
बाथरूम तक पूरा गलियारा पर करके जाने लगीं तब उनकी एक पड़ोसन ने उनको बताया की इसका मतलब था की
वे प्रेग्नेंट हैं.
शशि को काम की ज़रूरत थी. उन्हें स्टेज पर काम करना बेहद पसंद था पर अब उन्हें पैसों की सख्त ज़रूरत थी.
उनकी ज़िंदगी में अब एक बच्चा आने वाला था. जल्द ही उन्हें अपना पहला फिल्म रोल मिल गया और फिर और
भी मिले. उसी दरमियान उन्होंने अपनी पहले अंग्रेजी भाषा में बनी फिल्म थे ‘द हाउसहोल्डर’ (घरबार, १९६३)
मिली जिससे उन्हें समीक्षकों की सराहना मिली और कलात्मक अनुभूति भी . पर उससे घरखर्च नहीं निकल सकता
था और जेनिफ़र दोबारा प्रेग्नेंट थीं. इसलिए शशि ने हिंदी फिल्मों में काम जारी रखा.

इस दौर में शशि ने खुद को बेहद अकेला महसूस किया. हालाँकि उनके परिवार ने उनको घर से अलग नहीं किया
था पर अब वे अब बड़े हो चुके थे, शादीशुदा थे, और उनसे यही उम्मीद की जा रही थी की वे अपने परिवार का
भरण-पोषण खुद करेंगे. वैसे भी, उनके परिवार में मदद करने की परंपरा नहीं थी. न ही दम्भ स्वीकार करने की
और न ही बच्चों की मर्ज़ी का मान रखने की. काफी सालों बाद, जब मधु जैन कपूर खानदान पर अपनी किताब
लिख रही थीं, तब उन्होंने शशि का इंटरव्यू लिया जिसमे उन्होंने अपने जीवन के इस दौर पर बात की और बताया
की उस वक़्त वह कितने उदास थे, कितने अकेले और कितना स्ट्रगल कर रहे थे अकेले. वह अपने परिवार को दोष
नहीं दे रहे थे बस इसी बात का अफ़सोस ज़ाहिर कर रहे थे की उस दौर में उनके पीछे कोई खड़ा नहीं था.
इस इंटरव्यू के बाद मधु ने उनकी एक महिला को-स्टार का इंटरव्यू लिया जो की उनकी पहली हीरोइनों में से एक
थी और उस वक़्त एक इस्टाब्लिशड स्टार थी जब शशि इंडस्ट्री में नए थे. उन्होंने बताया की शूटिंग शुरू होने से
पहले उन्हें राज कपूर का फ़ोन आया था और उन्होंने उनसे शशि का ख्याल रखने को कहा और उनकी मदद करने
को कहा क्योंकि वे शशि को अपना बेटा मानते थे और राज उनकी मदद के लिए ताउम्र उनके शुक्रगुज़ार रहे. यह
दुख की बात है की इस इंटरव्यू के वक़्त तक, जब उस घटना को तकरीबन पचास साल बीत चुके थे, शशि इस बात
के बारे में नहीं जानते थे. वे अभी भी खुद को परिवार का सबसे छोटा सदस्य मानते थे जिसको बड़े घर भूल गए
और जिसको माँ ने सबसे ज़्यादा प्यार दिया क्योंकि किसी और को उनकी परवाह नहीं थी.
शशि की यही ख़ासियत थी. वह खुद को प्यार के काबिल नहीं समझते थे पर खुद वे सबको बेहद प्यार करते थे.
अपने बीवी-बच्चों को पालने के लिए वे दिनों रात हिंदी फिल्मों में मेहनत करते और किसी तरह वक़्त निकल कर
आर्ट फिल्मों और थिएटर को भी सपोर्ट करते- कभी उनमें एक्टिंग करके, कभी मर्चेंट-आइवरी फिल्मों को प्रोड्यूस
और फण्ड करके और अंततः अपने पिता के पृथ्वी थिएटर को दोबारा खड़ा करके जिसको उन्होंने अपनी फिल्मों की
कमाई से दोबारा स्थापित किया जैसा की उनके पिता ने किया था.
अगर आप शशि को उनकी लोकप्रिय हिन्दी फिल्मों में देखेंगे तो उनको मासूम, प्यारा और हैंडसम पाएँगे. शर्मीली
और जब जब फूल खिले जैसी फिल्मों के बेहद पुरकशिश और हँसमुख हीरो की छवि को उन्होंने कभी कभी और
सत्यम शिवम सुंदरम जैसी फ़िल्मो में तकरीबन पंजाबी, ज़िंदादिल, मच्योर, हैंडसम हीरो की छवि तक सँवारा
(सत्यम शिवम सुंदरम के लिए उन्होने अपने बड़े भाई राज से पैसे नही लिए थे और एक बार फिर अपने किसी
करीबी के लिए उन्होने त्याग की भावना दिखाई) इन फिल्मों में शशि शांत स्वभाव से अपना काम करते दिखते हैं
और उनमें सुपरस्टार वाला कोई दम्भ नहीं दिखता है. जहाँ उनके भाई स्क्रीन पर आग लगा देते थे, शशि एक शांत
शमा की तरह सुनहले परदे को प्रज्ज्वलित करते थे.
शशि की असली कला उनकी आर्ट फिल्मों में दिखती है. ख़ुश-मिज़ाज, छैल-छबीले, आश्वस्त – उनसे नज़रें हटाना
मुश्किल होता था. अगर वे सिर्फ आर्ट फिल्में ही कर पाते तो बहुत आसानी से वह पूरी दुनिया में फिल्मों के
महानतम कलाकारों में से एक होते. दुनिया भर में दर्शक उनको पसंद करते थे और उनको अवार्ड्स से नवाज़ते थे.
पर उन्हें शायद अपने लिए यह सब नहीं चाहिए था. उन्हें अपने लिए कलात्मक पूर्ति और प्रशंसा नहीं चाहिए थी.
उन्हें दूसरों के लिए काम करना पसंद था और उन्हें सिर्फ इतना कमाना था जितने में वे पृथ्वी थिएटर को जीवित
रख सकते, अपने परिवार और खुशहाल रख सकते और उन आर्ट फिल्मों को फण्ड कर सकते जिनको कहीं और से
फंडिंग की उम्मीद नहीं थी.
शायद शशि का यही खुश-मिज़ाज व्यक्तित्व ही था जिसकी वजह से वे उम्र भर अपनी पत्नी के लिए समर्पित रहे.
वे एकलौते कपूर थे जिनके बारे में कभी एक भी अफेयर की अफ़वाह नहीं उठी. जेनिफ़र को उन्होंने पहले दिन से
आखिरी लम्हे तक चाहा. उनके देहांत से वे कभी उबर न सके. वे केवल 51 की थीं और अपनी सबसे छोटी बेटी के
बड़े हो जाने के बाद उन्होंने बस अभी-अभी एक्टिंग दोबारा शुरू की थी . और फिर वो कैंसर के कारण चल बसीं ठीक
वैसे ही जैसे शशि की मां गुज़रीं थीं.
जेनिफ़र के गुज़र जाने के बाद शशि ने फिल्मों में काम करना लगभग बंद ही कर दिया. शायद वे नहीं कर पाए और
जेनिफ़र की मौत की प्रतिक्रिया में उन्होंने खुद पे ध्यान देना बंद कर दिया. काफी जल्द ही उनका वज़न बहुत बढ़
गया और वे हीरो के रोल के लिए उपयुक्त नहीं रहे. और कैरक्टर रोल भी लेना उन्होंने काफी काम कर दिया. ऐसा
लगा की मानो काम करने से उनका मन ही उठ गया हो.
पर उनका ध्यान रखने के लिए उनके बच्चे थे. उनके बड़े बेटों करण और कुणाल ने एक्टिंग में हाथ डाला. दोनों ही
काफी हैंडसम थे. कपूर नैन-नक्शों के साथ उन्हें अपने मां से नीली आँखें और सुनहरे बाल मिले थे. पर उन दोनों ने
जल्द ही एक्टिंग छोड़ दी और आखिरकार भारत भी छोड़ दिया और इंग्लैंड में सेटल हो गए. केवल उनकी बेटी
संजना उनके साथ रही. उन्होंने पृथ्वी थिएटर्स का काम संभाला और उसकी इमारत को एक कॉम्प्लेक्स में बदला
जिसमे कई स्टेज और कॉफ़ी शॉप भी थीं और यह जगह बॉम्बे के आर्ट सीन में यह फिर एक जाना माना नाम बन
गयी.

और इस तरह भुला दिया गया छोटा भाई, जिसने सही तरह की लड़की से शादी नहीं की और जिसने सही तरह का
करियर नहीं बनाया उसी ने अंत में परिवार की विरासत को संभाला. पृथ्वी थिएटर आज भी कपूर खानदान का
दिलोजान है.
और पिछले कुछ सालों में, शशि भी कपूर खानदान के दिलोजान रहे. शम्मी के देहांत के बाद, बल्कि शम्मी की
बीमारी के अंतिम दिनों में भी, शशि ने घर के सर्वेसर्वा का भूमिका निभाई थीं. वे शादियों और अंतिम संस्कारों में
कपूर खानदान का प्रतिनिधित्व करते और हर साल क्रिसमस लंच पे वे ही पूरे खानदान को अपने घर पर होस्ट
करते.
यह जेनिफ़र की शुरू की हुई परंपरा थीं. वे हर साल अपने ससुराल वालों को क्रिसमस के मौके पे लंच के लिए
बुलाती थीं. और शशि ने उनकी याद में इस परंपरा को एकाकी 33 सालों तक जीवित रखा. करीना, रणबीर,
करिश्मा और उनके दोनों बच्चे हर साल एक ऐसी छोटी दादी की याद में इस लंच पे जाते हैं जिनसे वे कभी मिले भी
नहीं सिर्फ इसलिए क्योंकि शशि ने हमेशा सबको बिना शर्त बहुत प्यार दिया.
और शशि की यही ख़ासियत थीं. आपको न चाहते हुए भी उनसे बेहद लगाव हो जाता. परदे पर और परदे से इतर,
उनमें एक अजब सी कशिश थी और ऐसा लगता मानो उनका एकाकी दिल सिर्फ लोगों को प्यार देना चाहता है और
बदले में प्यार पाना चाहता है.

इसलिए मैं दुखी हूँ की शशि कपूर खानदान की अज़ीम-तरीन जेनरेशन के आखिरी सदस्य थे और परिवार के
मुखिया अब रणधीर होंगे. मैं इसलिए भी दुखी हूँ क्योंकि शशि हमसे बिछड़ जाने वाले फिल्मों
FYI, the text is moving off the page to the right and can’t all be read. Um, not that I read Hindi but you know what I mean.
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Shoot! Struggling with formatting now.
On Mon, Dec 25, 2017 at 12:53 PM, dontcallitbollywood wrote:
>
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On the app, i can read the text just fine. here, it’s kinda taking a paragraph break all on its own iin every second line 😐
But so excited to have my mom and aunts finally read this!!!!!
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I fiddled and foodled and this is the best I can do. Thank goodness it is now legible!
On Mon, Dec 25, 2017 at 10:32 PM, dontcallitbollywood wrote:
>
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Well this is good enough! Although I do think you should have made the title in hindi because that’s what’s people are going to read first in the links!! Oh well, it’s probably too much work per post anyway for you and translators both!
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What a nice idea! And I agree with Asmita about the title in Hindi 🙂
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